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ग़ज़ल
एक धुँदला सा तसव्वुर है कि दिल भी था यहाँ
अब तो सीने में फ़क़त इक टीस सी पाता हूँ मैं
आग़ा हश्र काश्मीरी
ग़ज़ल
क़ीमत में उन के गो हम दो जग को दे चुके अब
उस यार की निगाहें तिस पर भी सस्तियाँ हैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
तेरा ही हुस्न जग में हर-चंद मौजज़न है
तिस पर भी तिश्ना-काम-ए-दीदार हैं तो हम हैं
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
एक तो नैनाँ कजरारे और तिस पर डूबे काजल में
बिजली की बढ़ जाए चमक कुछ और भी गहरे बादल में