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ग़ज़ल
ख़िज़ाँ में पेड़ पे पत्ते ज़रा नहीं टिकते
बहार आते ही रिश्ते निभाने लगते हैं
मोहम्मद कलीम ज़िया
ग़ज़ल
ज़माने सुन तिरी ये फिसलनें चलने नहीं देतीं
कहीं भी हम नहीं टिकते तिरी रफ़्तार के आगे
राजकुमार कोरी राज़
ग़ज़ल
हज़ारों हाथ उठते हैं हज़ारों घुटने टिकते हैं
बड़ी मुश्किल से होता है दवाओं में असर पैदा
वी. सी. राय नया
ग़ज़ल
यूँ मुझे टिकते न देता फ़स्ल-ए-गुल में बाग़बाँ
वो तो यूँ कहिए चमन में आशियाँ पहले से है