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ग़ज़ल
हँस हँस के जवाँ दिल के हम क्यूँ न चुनें टुकड़े
हर शख़्स की क़िस्मत में इनआ'म नहीं होता
मीना कुमारी नाज़
ग़ज़ल
आज़ादी का दरवाज़ा भी ख़ुद ही खोलेंगी ज़ंजीरें
टुकड़े टुकड़े हो जाएँगी जब हद से बढ़ेंगी ज़ंजीरें
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
दिल है दाग़ जिगर है टुकड़े आँसू सारे ख़ून हुए
लोहू पानी एक करे ये इश्क़-ए-लाला-अज़ाराँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
बहुत रुक रुक के चलती है हवा ख़ाली मकानों में
बुझे टुकड़े पड़े हैं सिगरेटों के राख-दानों में
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
टुकड़े कर डाले कोई उस के तो मैं भी ख़ुश हूँ
दिल न होगा न मिरी जान मोहब्बत होगी
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
दिल के टुकड़े हुए बरसात हुई अश्कों की
क्या कहूँ क्या क्या हुआ है तिरे जाने के बाद
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
कुछ तो पाएँगे उस की क़ुर्बतों का ख़म्याज़ा
दिल तो हो चुके टुकड़े अब सरों की बारी है
मंज़र भोपाली
ग़ज़ल
हर नाले में याँ टुकड़े जिगर होता है बुलबुल
आसान नहीं तर्ज़ उड़ानी मिरे दिल की
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
सुना है बर्फ़ के टुकड़े हैं दिल हसीनों के
कुछ आँच पा के ये चाँदी पिघल तो सकती है