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ग़ज़ल
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
कल बिछड़ना है तो फिर अहद-ए-वफ़ा सोच के बाँध
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है गया कुछ भी नहीं
अख़्तर शुमार
ग़ज़ल
दार ही बनती है ऐ दिल ज़ीना-ए-मेराज-ए-इश्क़
ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-मोहब्बत की यही ताबीर है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
इरादे पर अटल रहते हैं ऐ 'आग़ाज़' हम अपने
वही सब कर गुज़रते हैं जो मन में ठान लेते हैं