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ग़ज़ल
बहार आई किसी का सामना करने का वक़्त आया
सँभल ऐ दिल कि इज़हार-ए-वफ़ा करने का वक़्त आया
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी
मौत आएगी तो ऐ हमदम शिफ़ा हो जाएगी
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
ग़ज़ल
अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते
पहुँचते जा लब-ए-साक़ी कूँ पैमाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
सरापा दर्द है हर लफ़्ज़ उस ग़मगीं कहानी का
न क़िस्सा सुन सकोगे तुम मिरी शाम-ए-जवानी का
फ़ाज़िल काश्मीरी
ग़ज़ल
जब मुफ़क्किर मिरे अंदाज़-ए-बयाँ तक पहुँचे
मेरी हालत मिरे हर राज़-ए-निहाँ तक पहुँचे
महवर सिरसिवी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
करम हो या सितम सर अपना ख़म यूँ भी है और यूँ भी
तिरा दीवाना तो साबित-क़दम यूँ भी है और यूँ भी
ख़िज़्र बर्नी
ग़ज़ल
आ गया ज़ुल्फ़ के दम में दिल-ए-नादाँ अपना
अपने हाथों से किया हाल परेशाँ अपना
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
न मुरव्वत है न उल्फ़त न वफ़ा मेरे बा'द
मेरा सरमाया भी दुनिया से उठा मेरे बा'द