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ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
मक़्सद-ए-इश्क़ हम-आहंगी-ए-जुज़्व-ओ-कुल है
दर्द ही दर्द सही दिल बू-ए-दम-साज़ तो दे
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नाइब-ए-ख़ालिक-ए-कुल हूँ मैं ज़मीं पर 'तसनीम'
गर्दिश-ए-वक़्त मुसलसल है मिरे ही दम से
तसनीम अब्बास क़ुरैशी
ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-गर्दिश-ओ-आफ़ात-ए-मुसलसल मत पूछ
जब मरज़ हद से बढ़ा रह गया दरमाँ हो कर
महमूद अबदुल क़दीर
ग़ज़ल
अल्लह अल्लाह रे तक़्दीस-ए-मोहब्बत का फ़ुसूँ
आफ़त-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर राहत-ए-जाँ है जैसे
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
आफ़त-ए-अर्ज़-ए-समावी से बचेगा अपना घर
इस्म-ए-आज़म जब है शामिल हर दर-ओ-दीवार में
हामिद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
आरिज़ तेरे शम्अ' सफ़ा हैं राहबर-ए-कुल-अहल-ए-वफ़ा हैं
पहूँचा अपने मक़्सद तक इस रौशनी में परवाना भी