aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aaina e jamal bilqe"
गुम इस क़दर हुए आईना-ए-जमाल में हमउसी को ढूँडते हैं उस के ख़द्द-ओ-ख़ाल में हम
दिल ने जब भी तिरा ख़याल कियाख़ुद को आईना-ए-जमाल किया
लुत्फ़ लेने को उन की हैरत काहम भी आईना-ए-जमाल हुए
हर शय को मेरी ख़ातिर-ए-नाशाद के लिएआईना-ए-जमाल बना कर चले गए
कितने हसीन ख़्वाब तरसते हैं दीद कोआईना-ए-जमाल पे बैठेगी कितनी ख़ाक
सिद्क़ ओ सफ़ा सिखाता है नज़्ज़ारा-बाज़ कोआईना-ए-जमाल तिरा सर से पाँव तक
आईना-ए-जमाल को देखूँगा किस तरहउस ने तो पहले ही मुझे हैराँ बना दिया
हर ज़र्रे को सिखाई है जिस ने मुसव्विरीआईना-ए-जमाल झलक भी उसी की है
जल्वा दिखा रहा है वो आईना-ए-जमालआती है हम को शर्म कि क्या मुँह दिखाएँ हम
ताब-ए-नज़र से उन को परेशाँ किए हुएआईना-ए-जमाल को हैराँ किए हुए
मुशाहिदे को इक आईना-ए-जमाल दियाकमाल-ए-इश्क़ ने जौहर दिखा दिए दिल के
नज़र के सामने आईना-ए-जमाल रहानियाज़-ए-इश्क़ की आज इतनी आबरू तो हुई
सूरत-नुमा हो इश्क़ तिरा फिर कहाँ अगरआईना-ए-जमाल-ए-सरापा शिकस्त हो
जलने लगी नक़ाब-ए-हुस्न कौंद गईं वो बिजलियाँआइना-ए-जमाल में रंग-ए-जलाल आ गया
मिरी ग़ज़ल की सबाहत को ख़द्द-ओ-ख़ाल तो देऔर इस ख़याल को आईना-ए-जमाल तो दे
आईना-ए-जमाल-ए-जहाँ को बहुत न देखडरता है दिल कहीं तुझे अपनी नज़र न हो
तोड़ा है तू ने जब से मिरे दिल का आइनाअंदाज़ा-ए-जमाल मुझे भी नहीं रहा
सख़्त नज़र-फ़रेब है आइना-ख़ाना-ए-जमालउस की चमक-दमक न देख, देख बुझा बुझा मुझे
अक्स-ए-सफ़ा-ए-क़ल्ब का जौहर है आईनावारफ़्ता-ए-जमाल ख़ुद-आरा कहें जिसे
जिस से अयाँ हो दहर का एहसास-ए-बे-रुख़ीआईना वो 'जमाल' हमारी नज़र में है
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