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ग़ज़ल
कल ही नक़्श-ए-ज़ाइक़ा सुन कर भी हम आमिल रहे
ऐ अज़ीज़ाँ इस हयात-ए-राएगाँ को इश्क़ है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नाम-ए-नेक अहल-ए-हुकूमत को कहाँ हासिल हुआ
ख़ल्क़ में मशहूर इक नौ-शेरवाँ आदिल हुआ
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
इल्म का दौरा लहू के साथ रग रग में रहे
जौहर-ए-क़ाबिल अगर हो क़ुव्वत-ए-आमिल बनो
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
किसी आमिल ने बोला था मिरी रूदाद सुन के ये
मियाँ ये ऐश ममनूअ' है ज़रूरत साथ रहती है
सय्यद मुज़म्मिल अहमद सियाह
ग़ज़ल
मेस्मिरीज़्म के 'अमल में दह्र अब मशग़ूल है
मग़रिब-ओ-मशरिक़ में इक ‘आमिल है इक मा'मूल है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हो गया अपने क़फ़स से फिर 'हिदायत' प्यार क्यों
है गिरफ़्तार-ए-फ़ुसूँ दिल लौह आमिल तोड़ दे
हिदायतुल्लाह
ग़ज़ल
वक़्त का रहबर-नुमा क़ज़्ज़ाक़ था हर आईना
सच है वो 'कैफ़ी' तुम्हारे शहर का आमिल न था
महफ़ूज़ कैफ़ी
ग़ज़ल
जो कहें वो कर दिखाएँ इस के हम 'आमिल नहीं
दो ज़बानें क्यों नहीं किस वास्ते दो दिल नहीं