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ग़ज़ल
'आरज़ी आसाइशों की चाह करना छोड़ दे
फ़िक्र-ए-उक़्बा ज़ह्न में रख फ़िक्र-ए-दुनिया छोड़ दे
सलीम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ज़ुल्म-ओ-इस्तिब्दाद के इस दौर-ए-पुर-आशोब में
राहतों आसाइशों से बे-ख़बर है ज़िंदगी
आबिद अलीम सहव
ग़ज़ल
धूप और छाँव बाँट के तुम ने आँगन में दीवार चुनी
क्या इतना आसान है ज़िंदा रहना इस आसाइश पर