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ग़ज़ल
बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतिश दीदा है हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता-आहिस्ता
कि आतिश गुल कूँ करती है गुलाब आहिस्ता-आहिस्ता
वली दकनी
ग़ज़ल
ख़ुद-शनासी की शराब-ए-आतिशीं भर कर 'नुशूर'
कासा-ए-मुफ़लिस को जाम-ए-जम बना सकता हूँ मैं
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
कोई लौ तक न दी काले पेड़ों को इस आतिशीं रक़्स ने
या'नी जंगल में उस मोर का नाचना भी अकारत गया
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
रग-ओ-पै में आग भड़क उठी फुंके है पड़ा ये सभी बदन
मुझे साक़िया मय-ए-आतिशीं का ये जाम कैसा पिला दिया
अज्ञात
ग़ज़ल
शराब-ए-आतिशीं वो है कि दो इक घूँट पीते ही
जो साक़ी हो तो आता है नज़र पैमाना मस्ती में
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
परवाना वस्ल-ए-शम्अ पे देता है अपनी जाँ
क्यूँकर रहे दिल उस के रुख़-ए-आतिशीं से दूर
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
वो बोले 'नुत्क़' तिरी गर्मियों में आग लगे
कभी कहा जो रुख़-ए-आतिशीं का बोसा दो