aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aayat"
लोग आयात पढ़ के सोते हैंआप के ख़्वाब देखने के लिए
दिल की तख़्ती पे भी आयात लिखी रहती हैंवक़्त मिल जाए तो उन की भी तिलावत करना
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आयाबात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
दिल में रहने न दूँ तिरा शिकवादिल में आया ज़बान से निकला
खिला दे फूल मेरे बाग़ में पैग़म्बरों जैसारक़म हो जिस की पेशानी पे इक आयत बशारत सी
नाज़िल हो कभी ज़ेहन पे आयात की सूरतआयात में ढल जा कभी जिबरील दहन तू
तिरे सीने से मिरे सीने में आयात उतरेंसूरा-ए-कश्फ़-ओ-करामात मुकम्मल हो जाए
समझी गई जो बात हमारी ग़लत तो क्यायाँ तर्जुमा कुछ और है आयत कुछ और है
दौलत है बड़ी चीज़ हुकूमत है बड़ी चीज़इन सब से बशर के लिए इज़्ज़त है बड़ी चीज़
पहले जैसा ही दुखी है आज भी बूढ़ा कबीरकोई आयत का मुख़ालिफ़ कोई मूरत के ख़िलाफ़
आए हम 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' के नग़्मात के बा'द'मुसहफ़'-ए-इश्क़-ओ-जुनूँ हुस्न की आयात के बा'द
ख़ुद को इस होश में मदहोश बनाने के लिएआयत-ए-हुस्न पढ़ूँ देखता जाऊँ तुझ को
किस जगह उँगली रखूँ किस हर्फ़ को कैसे पढ़ूँआयत-ए-इम्काँ तिरी तरतील ही मुमकिन नहीं
मेरे लफ़्ज़ों को भी देते हैं वो आयात-ए-शिफ़ाहाँ वही हुर्मत-ए-इंजील में रहने वाले
लोग कहते हैं हिजाबात नहीं जुज़ आयातकिस से कहिए कि ये आयात हैं ख़ुद ज़ात ऐ 'जोश'
गूँजी न क्यूँ फ़लक से कोई आयत-ए-ग़ज़बये गुम्बद-ए-सुकूत सदा क्यूँ नहीं हुआ
'आलम तमाम उस का गिरफ़्तार क्यूँ न होवो नाज़-पेशा एक है 'अय्यार क्यूँ न हो
अपने मय-ख़ाने से घबरा के मैं बाहर आयाजब हरम से कोई निकला न शनासा तेरा
एक आयत पढ़ के अपने-आप पर दम कर दियाहम ने हर चेहरे की जानिब देखना कम कर दिया
बे-नवा पत्ते भी आयात-ए-नुमू पढ़ते हुएतुम ने देखा है कभी शाख़-ए-शजर का जागना
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