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ग़ज़ल
अहमद राही
ग़ज़ल
मजज़ूबों के खेल समझना सब के बस की बात नहीं
पहले ज़ख़्म उधेड़ के जाना फिर उस की तुरपाई है
शायान क़ुरैशी
ग़ज़ल
अहमद राही
ग़ज़ल
वो चीज़ क्या है कि जिस की तलाश में 'अतहर'
उधेड़ उधेड़ के अपना बदन धुनों ख़ुद को
मिर्ज़ा अतहर ज़िया
ग़ज़ल
हवा तनाबें उखेड़ डाले कि साएबाँ को उधेड़ डाले
मैं ख़ौफ़ से बे-नियाज़ हो कर ये आशियाना बना रहा हूँ