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ग़ज़ल
आँखों में न ज़ुल्फ़ों में न रुख़्सार में देखें
मुझ को मिरी दानिश मिरे अफ़्कार में देखें
फ़ातिमा हसन
ग़ज़ल
मिरी तहज़ीब मेरे साथ है महव-ए-सफ़र हर-दम
मिरे अफ़्कार ज़िंदा हैं मिरा इज़हार ज़िंदा है
इरुम ज़ेहरा
ग़ज़ल
मिरे अफ़्कार पे बोले बड़ी तहज़ीब से ज़ाहिद
मुक़द्दर आज़माइश है किसी से कुछ नहीं बोलें
अज़हर हाश्मी सबक़त
ग़ज़ल
हज़ार तरह के अफ़्कार दिल को रौंद रहे हैं
मुक़ाबले में तिरे रंज-ए-रोज़गार है आ जा
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
मिरी सोचें हैं कैसी कौन इन सोचों का मरकज़ है
जो मेरे ज़ेहन में पलते हैं वो अफ़्कार कैसे हैं
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
मेरे अफ़्कार को देती है जिला उस की जफ़ा
ग़म न होते तो ये क़िर्तास सँवरता ही नहीं