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ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-ईजाद-ए-नाज़ अफ़सून-ए-अर्ज़-ज़ौक़-ए-क़त्ल
ना'ल आतिश में है तेग़-ए-यार से नख़चीर का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
औरों की मोहब्बत के दोहराए हैं अफ़्साने
बात अपनी मोहब्बत की होंटों पे नहीं आई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
ख़िरद वालों से हुस्न ओ इश्क़ की तन्क़ीद क्या होगी
न अफ़्सून-ए-निगह समझा न अंदाज़-ए-नज़र जाना
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
न लाई शोख़ी-ए-अंदेशा ताब-ए-रंज-ए-नौमीदी
कफ़-ए-अफ़्सोस मिलना अहद-ए-तज्दीद-ए-तमन्ना है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तेरे इख़्लास के अफ़्सूँ तिरे वादों के तिलिस्म
टूट जाते हैं तो कुछ और मज़ा देते हैं
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
था लुत्फ़-ए-वस्ल और कभी अफ़्सून-ए-इंतिज़ार
यूँ दर्द-ए-हिज्र सिलसिला-जुम्बाँ न था कभी
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
हम परी-ज़ादों में खेले शब-ए-अफ़्सूँ में पले
हम से भी तेरे तिलिस्मात का 'उक़्दा न खुला
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
आँखों से क़त्ल करते हो लब से जलाते हो
फिर ये कमाल क्या है जो अफ़्सूँ-गरी नहीं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
वो बुत ही मेहरबाँ सब अपना अपना हाल कहते हैं
लब-ए-ख़ामोश तुझ को भी कोई अफ़्साना आता है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
उस के अफ़्सूँ उस के फ़साने दोनों को मसहूर रखें
अक़्ल-ओ-जुनूँ की दहलीज़ों पर ख़्वाब का पहरा काफ़ी है
असलम अंसारी
ग़ज़ल
नाज़ हो या दिलबरी अफ़्सूँ हो या जादूगरी
सब को क़ुदरत ने तिरी चितवन का हिस्सा कर दिया