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ग़ज़ल
हमारा लाशा बहाओ वर्ना लहद मुक़द्दस मज़ार होगी
ये सुर्ख़ कुर्ता जलाओ वर्ना बग़ावतों का अलम बनेगा
उमैर नजमी
ग़ज़ल
अक़ाएद वहम हैं मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
अज़ल से ज़ेहन-ए-इंसाँ बस्ता-ए-औहाम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद
सब को पहचान लिया गर्दिश-ए-अय्याम के बाद
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
समझ लिया अहम नहीं मैं उस के वास्ते मगर
नज़र फिर उस से मिल गई ये दिल की फिर बहल गया