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ग़ज़ल
इक नवा हासिल-ए-सद-अहद-ए-फ़ुग़ाँ है 'हक़्क़ी'
बू-ए-गुल लाख बहारों का निशाँ हो जैसे
शानुल हक़ हक़्क़ी
ग़ज़ल
ग़ैर-ए-आह-ए-सर्द नहीं दाग़ों के जाने का इलाज
जुज़ सबा क्या है चराग़ों के बुझाने का इलाज
वली उज़लत
ग़ज़ल
मिरा ये दिल ब-ज़ाहिर मस्लहत-अंदेश है लेकिन
अना हावी अगर हो जुरअत-ए-इंकार रखता है
फ़रहान हनीफ़ वारसी
ग़ज़ल
सच है कि आह-ए-सर्द मिरी बे-असर नहीं
पत्थर को झाड़िए तो निकलता शरर नहीं