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ग़ज़ल
हलावत ज़िंदगी की है मुलाक़ात-ए-अहिब्बा में
मज़ा मुर्दे को तन्हाई का है ज़िंदे को सोहबत का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
'अज़ीज़' अफ़्कार-ए-दुनिया और मशाग़िल शेर-गोई के
अहिब्बा की मोहब्बत है जो इस क़ाबिल समझते हैं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
फेरी हैं अहिब्बा ने आँखें बदले हैं अइज़्ज़ा ने तेवर
है 'शौक़' हर आराज़ी बंजर मालूम नहीं क्या होना है
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
था ख़ौफ़-ए-ख़ुदा दुश्मन-ए-खूँ-ख़्वार के दिल में
बेड़ा मिरी ईज़ा का अहिब्बा ने उठाया
करामत अली शहीदी
ग़ज़ल
इश्क़ उन की बला जाने आशिक़ हों तो पहचाने
लो मुझ को अतिब्बा ने सौदे का ख़लल जाना
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
मोहब्बत का हमारा दायरा बस इत्तिबा' तक है
हमें ज़ेबा नहीं है सरमद-ओ-मंसूर हो जाना
अहमद मुशर्रफ़ ख़ावर
ग़ज़ल
बड़ी ही सहल-ओ-आसाँ ज़िंदगी हो जाएगी तिरी
तू इत्तिबा'-ए-ख़्वाहिशात-ए-ज़िन्दगी को छोड़ तो
गुलज़ार मुरादाबादी
ग़ज़ल
बीमार-ए-मोहब्बत हैं मर जाएँ तो अच्छा है
क़ुर्बान अतिब्बा के दरमाँ किसे कहते हैं