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आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब

असद अली ख़ान क़लक़

आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब

असद अली ख़ान क़लक़

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    आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब

    मुस्तहिक़ दार के फाँसी के सज़ा-वार हैं सब

    पास अतिब्बा को है मायूस परस्तार हैं सब

    तेरे बीमार-ए-मोहब्बत के बद-आसार हैं सब

    दिल-दही के भी नहीं तर्ज़ से वाक़िफ़ असला

    ये हसीनान-ए-जहाँ नाम को दिलदार हैं सब

    अब ये सूरत है मोहब्बत में तुम्हारी जान

    अपने बेगाने मिरी शक्ल से बेज़ार हैं सब

    ज़ुल्म-ए-सय्याद सहा जाए यकायक क्यूँकर

    हम असीरान-ए-क़फ़स ताज़ा गिरफ़्तार हैं सब

    हुस्न यकता-ए-दो-आलम है तिरा ही दोस्त

    तेरी वहदत के मुक़िर काफ़िर-ओ-दीं-दार हैं सब

    एक भी बात दिल ले के निबाहेंगे हुज़ूर

    ये ज़बानी ही फ़क़त आप के इक़रार हैं सब

    बे-ज़बानी से हैं मजबूर नहीं सुन लेते

    क़ाइल इस आबला-पाई के मिरे ख़ार हैं सब

    पड़ो फ़िक्र-ए-दहान-ओ-कमर-ए-यार में तुम

    कोई वाक़िफ़ नहीं ये ग़ैब के असरार हैं सब

    उस में ताऊस-ए-चमन को हुई या कब्क-ए-दरी

    परी-ज़ाद तिरे कुश्ता-ए-रफ़्तार हैं सब

    बारिश-ए-गिर्या के है साथ हवा आँखों की

    ख़ाना-ए-दिल की ख़राबी के ये आसार हैं सब

    क़ैस-ओ-फ़रहाद को सौदा था तिरा इश्क़ था

    तेरे दीवाना-ए-जाँ-बाख्ता होशियार हैं सब

    यही इंसाफ़ तिरे अहद में है शह-ए-हुस्न

    वाजिब-उल-क़त्ल मोहब्बत के गुनहगार हैं सब

    उन बुतों से नहीं उम्मीद ख़ुदा-तरसी की

    रहम दिल उन में नहीं एक सितमगार हैं सब

    बात किस तरह दम-ए-शिकवा हो सरसब्ज़ अपनी

    एक अपना नहीं वाँ उन के तरफ़-दार हैं सब

    कुछ उन्हें क़द्र नहीं नक़्द-ए-दिल-ए-आशिक़ की

    हसीनान-ए-जहाँ ज़र के तलबगार हैं सब

    किस तवक़्क़ो पे कोई बाग़-ओ-मकाँ बनवाए

    क़ब्र में एक काम आएगा बेकार हैं सब

    उन दिल-आवारों के अल्ताफ़ पर दिल तू भूल

    रंज कल देंगे यही आज जो ग़म-ख़्वार हैं सब

    फ़िक्र-ए-ईज़ा में मिरी कुछ नहीं तन्हा वही शोख़

    नाज़-ओ-अंदाज़-ओ-अदा और पए आज़ार हैं सब

    चीदा माशूक़ों के औसाफ़ किए हैं मौज़ूँ

    मुंतख़ब करने के क़ाबिल मिरे अशआर हैं सब

    तुझ सा ख़ुश-वज़अ' ख़ुश-अंदाज़ देखा अब तक

    यूँ तो मा'शूक़ ज़माने के तरह-दार हैं सब

    भूले हैं गर्दिश-ए-मीना-ए-फ़लक का नैरंग

    अहल-ए-ज़र जितने हैं मस्त-ए-मय-ए-पिंदार हैं सब

    दोस्ती कर के 'क़लक़' उन से बहुत पछताता

    दुश्मन-ए-जाँ मिरे ख़ूबान-ए-जफ़ा-कार हैं सब

    स्रोत:

    Mazhar-e-Ishq (Pg. e-55 p-53)

    • लेखक: असद अली ख़ान क़लक़
      • संस्करण: 1911
      • प्रकाशक: मुंशी नवल किशोर, कानपुर

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