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ग़ज़ल
अहल-ए-हरम में जा के बिना आज शैख़-ए-वक़्त
काफ़िर 'रियाज़' पीर-ए-कलीसा कहें जिसे
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
कहा अहल-ए-हरम ने रोके यूँ अकबर के लाशे पर
जवाँ होने का शायद तुम ने रक्खा नाम मर जाना