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ग़ज़ल
हम अहल-ए-ज़र्फ़ कि ग़म-ख़ाना-ए-हुनर में रहे
सिफ़ाल-ए-नम की तरह दस्त-ए-कूज़ा-गर में रहे
सहर अंसारी
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
अहल-ए-ज़र्फ़ आपे से बाहर नहीं होते 'आरिफ़'
हम समुंदर थे न बिफरे नदी नालों की तरह
इक़बाल अहमद ख़ाँआरिफ़
ग़ज़ल
फिर उस ने 'राज़' छू लिए साग़र के सुर्ख़ होंट
ख़तरे में अहल-ए-ज़र्फ़ की फिर आबरू रही
अय्यूब आदिल
ग़ज़ल
कमी पहले ही थी शायान अहल-ए-ज़र्फ़ की लेकिन
नज़र से हो रहे हैं आज कल अहल-ए-नज़र ग़ाएब
शायान क़ुरैशी
ग़ज़ल
जो अहल-ए-ज़र्फ़ हैं प्यासे वही हैं महफ़िल में
ये दौर किस का है ये इंतिज़ाम किस का है
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हमारा दर्द भी कुछ तुम से मुख़्तलिफ़ तो न था
हम अहल-ए-ज़र्फ़ थे चीख़-ओ-पुकार क्या करते
असरारुल हक़ असरार
ग़ज़ल
हम अहल-ए-ज़र्फ़ ख़ुशियों में भी क़ाबू ख़ुद पे रखते हैं
दुखी हो कर भी दुख से आस्तीनें नम नहीं करते