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ग़ज़ल
उस ने सहराओं की सैर करते हुए इक शजर के तले
अपनी आँखों से ऐनक उतारी कि दो हिरनियाँ खोल दीं
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
गो गुहर हो ऐ परी नाज़-ए-निगाह-ए-हूर का
ऐनक-ए-रिज़वाँ की हल्क़ा हैं तुम्हारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
ऐनक के दोनों शीशे ही अटे हुए थे धूल में
हाथ पड़ गया काँटों पर फूलों के बदले भूल में