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ग़ज़ल
है जबीं ख़ाक पे और 'अर्श-ए-मु'अल्ला पे दिमाग़
नक़्शा आँखों में तिरे दर का खिंचा होता है
ऐश मेरठी
ग़ज़ल
मता-ए-ज़िंदगी आराम-ए-जाँ सब्र-ओ-क़रार-ए-दिल
ख़ुदा की शान है हम उन को क्या समझे वो क्या निकले
ऐश मेरठी
ग़ज़ल
ऐश मेरठी
ग़ज़ल
ख़ुश-बख़्त है वो जिस के मुक़द्दर में 'इरम' है
मैं साथ में इक बाग़-ए-इरम ले के चली हूँ