aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "akhbaar"
ऐरे-ग़ैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनोंआप को औरत नहीं अख़बार होना चाहिए
है मजमा-ए-अग़्यार कि हंगामा-ए-महशरक्या सैर मिरे दीदा-ए-तर देख रहे हैं
वो अपना जिस्म सारा सौंप देना मेरी आँखों कोमिरी पढ़ने की कोशिश आप का अख़बार हो जाना
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना हैकभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा करमज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बतअब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम
अब तो बदनामी से शोहरत का वो रिश्ता है कि लोगनंगे हो जाते हैं अख़बार में रहने के लिए
अदब नहीं है ये अख़बार के तराशे हैंगए ज़मानों की कोई किताब दे जाओ
अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानीअपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते
'वसीम' ज़ेहन बनाते हैं तो वही अख़बारजो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
अख़बार से मिरी ख़बर-ए-मर्ग ऐ 'हफ़ीज़'मेरा ही दोस्त पढ़ के सुनाए तो क्या करूँ
ढूँढने रोज़ निकलते हैं मसाइल हम कोरोज़ हम सुर्ख़ी-ए-अख़बार में खो जाते हैं
सुर्ख़ियाँ अम्न की तल्क़ीन में मसरूफ़ रहींहर्फ़ बारूद उगलते रहे अख़बार के बीच
यही अख़बार की सुर्ख़ी बनेगाज़रा सा काम चिंगारी करे है
नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूँऔर जो पुल पे खड़े लोग हैं अख़बार से हैं
सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाएसोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए
सब के दुख सुख उस के चेहरे पर लिखे पाए गएआदमी क्या था हमारे शहर का अख़बार था
उठाओ आँख न शरमाओ ये तो महफ़िल हैग़ज़ब से जानिब-ए-अग़्यार देखते जाओ
जिस में इंसान के दिल की न हो धड़कन 'नीरज'शाइ'री तो है वो अख़बार के कतरन की तरह
मिली है जब से उन्हें बोलने की आज़ादीतमाम शहर के अख़बार झूट बोलते हैं
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