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ग़ज़ल
ये और बात कि अनजाने लग़्ज़िशें हो जाएँ
मगर शुऊ'र-ए-हराम-ओ-हलाल रखते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
कुछ अक़्ल-ओ-होश-ओ-फ़हम-ओ-फ़िरासत में खो गए
कुछ दोस्त ख़ुद को ढूँड रहे हैं शराब में
सुदर्शन कँवल
ग़ज़ल
ख़ब्त है ऐ हम-नशीं अक़्ल-ए-हरीफ़ान-ए-बहार
है ख़िज़ाँ इन की इन्हें आईना दिखलाए हुए