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ग़ज़ल
इज़्ज़त उसी की अहल-ए-नज़र की नज़र में है
सब कुछ बशर में है जो मोहब्बत बशर में है
सय्यद अमीर हसन मारहरवी दिलेर
ग़ज़ल
उल्टी पड़ती है हर इक काम की तदबीर अबस
मुझ से बरगश्ता हुई है मिरी तक़दीर अबस
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
वाक़िफ़ हैं मेरे नाला-ए-दिल के असर से आप
बेचैन हैं जो सदमा-ए-दर्द-ए-जिगर से आप
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
सौदा हुआ है जिस को रुख़-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार का
क्या ख़ौफ़ उस को गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार का
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
मसर्रत में भी है पिन्हाँ अलम यूँ भी है और यूँ भी
सुरूद-ए-ज़िंदगी में ज़ेर-ओ-बम यूँ भी है और यूँ भी
सय्यद हामिद
ग़ज़ल
दिल को करूँ निसार कि वारूँ जिगर को मैं
आँखों में दूँ जगह तिरे तीर-ए-नज़र को मैं
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
दिल को करूँ निसार कि वारूँ जिगर को मैं
आँखों में दूँ जगह तिरे तीर-ए-नज़र को मैं