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ग़ज़ल
बाबा अलिफ़ मिरी नुमूद रंज है आप के ब-क़ौल
क्या मिरा नाम भी है रंज हाँ तिरा नाम रंज है
जौन एलिया
ग़ज़ल
बाबा अलिफ़ इरशाद-कुनाँ हैं पेश-ए-अदम के बारे में
हैरत बे-हैरत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में
जौन एलिया
ग़ज़ल
फ़ना तालीम-ए-दर्स-ए-बे-ख़ुदी हूँ उस ज़माने से
कि मजनूँ लाम अलिफ़ लिखता था दीवार-ए-दबिस्ताँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हमारा अहद भी लिक्खे अलिफ़-लैला के जैसा कुछ
बदलना चाहिए अब रंग कुछ क़िस्सा-कहानी का
ख़ुर्शीद तलब
ग़ज़ल
तब से आशिक़ हैं हम ऐ तिफ़्ल-ए-परी-वश तेरे
जब से मकतब में तू कहता था अलिफ़ बे ते से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ये अच्छाई में भी 'साबिर' बुराई ढूँड लेती है
ये दुनिया है अलिफ़ पर भी कभी शोशा बनाती है
साबिर शाह साबिर
ग़ज़ल
कमाल-ए-फ़न मिरा अब तक निहाँ है ऐसे दुनिया से
कि ज्यूँ अब्दुलहई में इक अलिफ़ गुमनाम है साक़ी