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ग़ज़ल
थी सियाहियों का मस्कन मिरी ज़िंदगी की वादी
तिरे हुस्न के तसद्दुक़ मुझे रौशनी दिखा दी
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
दिल पे वो वक़्त भी किस दर्जा गिराँ होता है
ज़ब्त जब दाख़िल-ए-फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ होता है
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
ग़म-ए-बेहद में किस को ज़ब्त का मक़्दूर होता है
छलक जाता है पैमाना अगर भरपूर होता है
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
शाइ'री क्या है 'अमीन-अशरफ़' नवा-ए-बर्ग ने
इश्क़-नामा भी ग़ज़ल भी आसमाँ मेहराब भी
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
ज़फ़र अली ख़ाँ
ग़ज़ल
मुक़द्दर आज-कल कुछ मेहरबाँ मालूम होता है
ज़मीं का ज़र्रा ज़र्रा आसमाँ मालूम होता है