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ग़ज़ल
वो इक वरक़-ए-सादा जो सौंप आए थे तुझ को
उस पर तिरी नम आँखों का इमला भी बहुत है
मोहम्मद तारिक़ ग़ाज़ी
ग़ज़ल
जिस तरफ़ भी चल पड़े हम आबला-पायान-ए-शौक़
ख़ार से गुल और गुल से गुलसिताँ बनता गया