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ग़ज़ल
बड़े मूज़ी को मारा नफ़्स-ए-अम्मारा को गर मारा
नहंग ओ अज़दहा ओ शेर-ए-नर मारा तो क्या मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
'निज़ाम' इस नफ़्स-ए-अम्मारा की गर्दन भी कभी तोड़ी
जवाँ-मर्दी का दम तुम ने अगर मारा तो क्या मारा
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
हम अपना नफ़्स-ए-अम्मारा समझने से रहे क़ासिर
किताब-ए-नफ़्स पढ़ कर आगे अफ़लातून से निकले
शहनवाज़ नूर
ग़ज़ल
नफ़्स-ए-अम्मारा से नफ़्स-ए-मुतमइन्ना तक की रह
आतिशीं मौसम ज़मीं पुर-ख़ार और तन्हा सफ़र
जावेद जमील
ग़ज़ल
इंसान का बस नफ़्स-ए-अम्मारा मुख़र्रब है
ला-हौल वला क़ुव्वत शैताँ किसे कहते हैं
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
नफ़्स-ए-अम्मारा को क़ुव्वत से कुचल दे अपनी
वर्ना तकलीफ़ तुझे अहद-ए-जवानी देगा
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
ग़ज़ल
जंग जारी है मेरी नफ़्स-ए-अमारा से हनूज़
जब से देखा तुझे बरसात के आईने में
सय्यद इक़बाल रिज़वी शारिब
ग़ज़ल
मुझ पे ये सब्र-ओ-क़ना'अत का है एहसान 'सहर'
नफ़्स-ए-अम्मारा के नर्ग़े से निकल आया हूँ