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ग़ज़ल
जब भी लौटे प्यार से लौटे फूल न पा कर गुलशन में
भँवरे अमृत रस की धुन में पल पल सौ सौ बार गए
हबीब जालिब
ग़ज़ल
बीते लम्हे ध्यान में आ कर मुझ से सवाली होते हैं
तू ने किस बंजर मिट्टी में मन का अमृत डोल दिया
शकेब जलाली
ग़ज़ल
उस की धुन में हर तरफ़ भागा किया दौड़ा किया
एक बूँद अमृत की ख़ातिर मैं समुंदर पी गया
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
सच्चाई है अमृत धारा सच्चाई अनमोल सहारा
सच के रस्ते चल के सब ने ठोर ठिकाने पाए हैं