आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "anaa.dii"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "anaa.dii"
ग़ज़ल
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
अनाड़ी-पन न कहो मेरी सादा-लौही को
हूँ नौ-नियाज़ मगर कुहना-मश्क़-ए-जज़्ब-ओ-जुनूँ
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
मोहब्बत में अनाड़ी-पन बहुत नुक़्सान-देह है
ये झूला पहले चक्कर में उलट जाएगा साहिब
हम्ज़ा याक़ूब
ग़ज़ल
आज 'आबरू' दिल कूँ हमारे शौक़ ने उस के मगन किया है
जाग अनाड़ी देख तमाशा इश्क़ लगा तब सोना क्या
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
मैं समझता था जिसे घाग अनाड़ी निकला
हर अदाकार तो फ़नकार नहीं हो सकता
फ़ैज़ान जाफ़री अल-ख़्वारिज़्मी
ग़ज़ल
तुम मोहब्बत में अनाड़ी हो इसी से देख लो
जैसे तुम ने मुझ को चूमा है निशाँ रह जाएँगे
रिज़वान मुक़ीम
ग़ज़ल
सब जिस को असीरी कहते हैं वो तो है अमीरी ही लेकिन
वो कौन सी आज़ादी है यहाँ जो आप ख़ुद अपना दाम नहीं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
आज़ादी का दरवाज़ा भी ख़ुद ही खोलेंगी ज़ंजीरें
टुकड़े टुकड़े हो जाएँगी जब हद से बढ़ेंगी ज़ंजीरें