आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "angar"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "angar"
ग़ज़ल
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दहकते क्यों नहीं ऐ दिल बुझे अंगार हो क्या
रुकी है जो ज़बाँ तक आ के वो गुफ़्तार हो क्या