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ग़ज़ल
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा
मुझे फ़िक्र-ए-जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये फ़लक ये माह-ओ-अंजुम ये ज़मीन ये ज़माना
तिरे हुस्न की हिकायत मिरे इश्क़ का फ़साना
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
शब हुई फिर अंजुम-ए-रख़्शन्दा का मंज़र खुला
इस तकल्लुफ़ से कि गोया बुत-कदे का दर खुला