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ग़ज़ल
जब चाहा इक़रार किया है जब चाहा इंकार किया
देखो हम ने ख़ुद ही से ये कैसा अनोखा प्यार किया
मीना कुमारी नाज़
ग़ज़ल
'राज़' ये ग़ज़ल अपनी इक हसीं का सदक़ा है
शे'र भी अनोखे हैं हैं तर्ज़ भी निराली है
राज़ इलाहाबादी
ग़ज़ल
ये मंज़र ये रूप अनोखे सब शहकार हमारे हैं
हम ने अपने ख़ून-ए-जिगर से क्या क्या नक़्श उभारे हैं
जमील मलिक
ग़ज़ल
अक़्ल-ओ-ख़िरद के बल बूते पर सब को हैराँ कर के
काम अनोखे कर जाते हैं कैसे कैसे लोग
अकबर हैदराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
इस पे न जाओ कैसे किया है मैं ने मुझ को ख़ुद से अलग
बस ये देखो कैसे अनोखे-पन से अलग कर रक्खा है
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
जंगल थे और लोग पुराने सोग पहन कर सोते थे
एक अनोखे ख़्वाब से अपनी जान छुड़ा कर लाया हूँ
साक़ी फ़ारुक़ी
ग़ज़ल
ये ख़ुश्क क़लम बंजर काग़ज़ दिखलाएँ किसे समझाएँ क्या
हम फ़स्ल निराली काटते थे हम बीज अनोखे बोते थे
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
पी रहे हैं ख़ुशनुमा शीशों में लोग अपना लहू
और क्या होगा अनोखे रंग का जश्न-ए-तरब