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ग़ज़ल
कोई तो हो जो उस को रोकने का मो'जिज़ा करे
या हो रहा है जो वो कोई ख़्वाब हो ख़ुदा करे
अनुराग अर्श
ग़ज़ल
मचलती हैं मचलती हैं मचल कर डूब जाती हैं
तिरी यादें मिरे ग़म को ग़ज़ल कर डूब जाती हैं
अनुराग अर्श
ग़ज़ल
कोई चिट्ठी लिक्खो रंग-भरी कोई मुट्ठी खोलो फाग-भरी
कभी दिन बीतें बैराग-भरे कभी रुत आए अनुराग-भरी
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हमारी कहकशाँ वालों की दुनिया में अंधेरा है
कहाँ है तू यहाँ वालों की दुनिया में अंधेरा है