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ग़ज़ल
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
बे-ख़याली में यूँही बस इक इरादा कर लिया
अपने दिल के शौक़ को हद से ज़ियादा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
मिरा इरादा तो पहले ही से है मान जाने का सच बताऊँ
तुम अपने भर भी तमाम हर्बों को आज़माओ मुझे मनाओ
आमिर अमीर
ग़ज़ल
इरादा था कि मैं कुछ देर तूफ़ाँ का मज़ा लेता
मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर
इस पूँजी पर कितना शोर मचा सकता था मैं