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ग़ज़ल
हाँ ये अप्रैल है बस आग ही बरसाओ अभी
खिलती कलियों की तरह बोलिए जुलाई में
अब्दुस समी सिद्दीक़ी नईम
ग़ज़ल
आख़िर ऊपरी हमदर्दी को रंग तो इक दिन लाना था
बात थी पहले चंद घरों तक अब दुनिया भौंचाल में है
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
ग़ज़ल
जज़्बा-ए-शौक़ बढ़ाता है जुदा हो जाना
ऊपरी दिल से ज़रा मुझ से ख़फ़ा हो जाना
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
जो ऊपरी रू तुझे दिखाता जमाल अपना तो वोहीं नासेह!
हमारे मानिंद छोड़ घर को गली में उस की क़याम करता
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
इक बहाना हमें मिल जाएगा जीने के लिए
ऊपरी दिल ही से कह दीजिए हम आप के हैं