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ग़ज़ल
'ग़ालिब' अपना ये अक़ीदा है ब-क़ौल-ए-'नासिख़'
आप बे-बहरा है जो मो'तक़िद-ए-'मीर' नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
'इश्क़ बस में है मशिय्यत के अक़ीदा था मिरा
उस के बस में है मशिय्यत मुझे मा'लूम न था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
आशिक़ाना है अक़ीदा भी हमारा 'माइल'
ले के हम नाम-ए-बुताँ ज़िक्र-ए-ख़ुदा करते हैं
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
मैं ला-मज़हब हूँ लेकिन है अक़ीदा ईद पर मेरा
गले तुझ को लगाने के बहाने ढूँड लेता हूँ
चन्द्र शेखर वर्मा
ग़ज़ल
मता-ए-हक़-अक़ीदा एक सज्दे में चुरा लाया
ख़िरद जूया थी किस दहलीज़ पर किस दर पे रक्खी है
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
हक़ीक़त उन की जो भी हो अक़ीदा है यही अपना
इन्हीं ख़्वाबों से मंज़िल के लिए रस्ता निकलता है
ओबैदुर रहमान
ग़ज़ल
अहल-ए-ईमाँ का अक़ीदा है ख़ुदा के बाब में
है वही सब कुछ जो ता-हद्द-ए-नज़र कुछ भी नहीं
नज़ीर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
कि मैं ने चाहत को भी अक़ीदा बना लिया है
अगर मिली तो अक़ीदतों में तुम्हें मिलूँगी