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ग़ज़ल
अहमद और अहमद-ए-बे-मीम का पर्दा क्या है
अक़्ल-ए-अव्वल को भी हैरत है मुअम्मा क्या है
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
ज़मीन-ए-क़िब्ला-ए-अव्वल तुझे ख़ुदा रखे
कि दिल हुआ है तिरे ग़म में पारा पारा मिरा
अब्दुर्राहमान वासिफ़
ग़ज़ल
कहाँ अब वो सुरूर-ए-दौर-अव्वल बज़्म-ए-हस्ती में
जिसे कहते हैं दुनिया है वो ऐ 'मैकश' ख़ुमार अपना
मयकश अकबराबादी
ग़ज़ल
हिम्मत-अफ़्ज़ाई न जब उम्माल-ए-मामूली ने की
पहुँची रिश्वत अफ़सरान-ए-दर्जा-ए-अव्वल के पास
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
क़ामत-ए-जानाँ है मील-ए-मंज़िल-ए-अव्वल मुझे
काकुल-ए-शब-गूँ है जादा वादी-ए-आफ़ात का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
कुछ अक़्ल-ओ-होश-ओ-फ़हम-ओ-फ़िरासत में खो गए
कुछ दोस्त ख़ुद को ढूँड रहे हैं शराब में
सुदर्शन कँवल
ग़ज़ल
ख़ब्त है ऐ हम-नशीं अक़्ल-ए-हरीफ़ान-ए-बहार
है ख़िज़ाँ इन की इन्हें आईना दिखलाए हुए