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ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नहीं फ़स्ल-ए-गुल का शैदा मिरी ख़्वाहिशों का मौसम
गुल-ए-दिल करूँ जो अर्पण मिरा देवता न जाने
फ़हीम जोगापुरी
ग़ज़ल
जनम जनम से मधुर मिलन की आई है यही रीत
जान करे जो हँस कर अर्पण दर्शन भी वही पाए
तुफ़ैल होशियारपुरी
ग़ज़ल
तू ने साँसों की सूली पर लम्बी रात गुज़ारी है
काश तिरे अर्पण कर सकता मैं अपने हिस्से का दिन
इंद्र मोहन मेहता कैफ़
ग़ज़ल
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जिस को ख़ुद मैं ने भी अपनी रूह का इरफ़ाँ समझा था
वो तो शायद मेरे प्यासे होंटों की शैतानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
थीं बनात-उन-नाश-ए-गर्दुं दिन को पर्दे में निहाँ
शब को उन के जी में क्या आई कि उर्यां हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जब हुआ इरफ़ाँ तो ग़म आराम-ए-जाँ बनता गया
सोज़-ए-जानाँ दिल में सोज़-ए-दीगराँ बनता गया