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ग़ज़ल
दर पे रहने को कहा और कह के कैसा फिर गया
जितने अर्से में मिरा लिपटा हुआ बिस्तर खुला
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नज़र करते हैं यूँ जैसे बिछड़ने की घड़ी हो
सुख़न करते हैं ऐसे जैसे गिर्या कर रहे हैं
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
उसे यादों में जब लाना मुसलसल कर दिया मैं ने
उसे वो हिचकियाँ आईं कि पागल कर दिया मैं ने