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ग़ज़ल
देखिए आईना-ए-पीरी में फिर बचपन का हाल
'अहद-ए-माज़ी की झलक कुछ अहद-ए-मुस्तक़बिल में है
शोला करारवी
ग़ज़ल
नाज़िश हैदरी
ग़ज़ल
तिरे बाब-ए-करम पर जिस को सज्दे से तअम्मुल हो
सर ऐसा कोई ऐ पीर-ए-मुग़ाँ बाक़ी न रह जाए
शर्म लखनवी
ग़ज़ल
अहद-ए-पीरी में ग़ज़ल 'तरज़ी' मियाँ ऐसी जवाँ
इश्क़ में किस के भला इतने भी रुस्वा आप हैं