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ग़ज़ल
नाला-ए-दिल में मिरे अब वो असर हो कि न हो
क्या पता उन को मिरे ग़म की ख़बर हो कि न हो
नासिर अंसारी
ग़ज़ल
वाक़िफ़ हैं मेरे नाला-ए-दिल के असर से आप
बेचैन हैं जो सदमा-ए-दर्द-ए-जिगर से आप
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
वफ़ा-ए-दिलबराँ है इत्तिफ़ाक़ी वर्ना ऐ हमदम
असर फ़रियाद-ए-दिल-हा-ए-हज़ीं का किस ने देखा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नालों से अगर मैं ने कभी काम लिया है
ख़ुद ही असर-ए-नाला से दिल थाम लिया है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
कह दिया सब कुछ बशक्ल-ए-शेर उन की बज़्म में
नाला-ए-दिल-सोज़ को हम यूँ असर तक ले गए