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ग़ज़ल
छेड़ मंज़ूर है क्या आशिक़-ए-दिल-गीर के साथ
ख़त भी आया कभी तो ग़ैर की तहरीर के साथ
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
वो मुश्त-ए-ख़ाक जो परवाना-ए-दिल-गीर बनती है
जिगर की आग बुझ जाती है जब इक्सीर बनती है
तालिब देहलवी
ग़ज़ल
नज़र भर कर वो क्या तुझ को दिल-ए-दिल-गीर देखेंगे
वो जब देखेंगे अपने हुस्न की तस्वीर देखेंगे
मोहम्मद बिल हसन शरार
ग़ज़ल
समझो दस्तावेज़ ज़ख़्म-ए-आशिक़-ए-दिल-गीर को
कब मिटा सकते हो अपने हाथ की तहरीर को
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
इस क़दर खिंचना नहीं अच्छा बुत-ए-बे-पीर देख
प्यार की नज़रों से सू-ए-आशिक़-ए-दिल-गीर देख
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
हम बग़ल में दिल-ए-दिल-गीर लिए बैठे हैं
ग़म की मुँह बोलती तस्वीर लिए बैठे हैं
शोएब अहमद मेरठी नुद्रत
ग़ज़ल
ऐ मिरे हम-दम-ए-दिल-गीर दुआ दे मुझ को
उस के क़दमों पे रहूँ शाख़-ए-गुल-अफ़्शाँ की तरह