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ग़ज़ल
न बाँधो गोल चक्कर अपने सर पर ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ का
कहीं ऐसा न हो 'बुलबुल' उसी को घोंसला समझे
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
बहार आने पे बुलबुल देखना जश्न-ए-बहाराँ में
क़फ़स में नाचती होंगी क़फ़स की तितलियाँ मेरी
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
जब कभी बुलबुल मुझे होता है नज़ला और ज़ुकाम
बस ज़रा दो घूँट वक़्त-ए-शाम पी लेता हूँ मैं
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
रक़म है दास्तान-ए-इश्क़-ए-बुलबुल पत्ते पत्ते पर
गुलों तक किस तरह गुलशन में ये अफ़्साना आ पहुँचा
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
'अश्क' अपने सीना-ए-पुर-ख़ूँ में सैल-ए-अश्क भी
रोक रखता हूँ जिगर के ख़ून की तहलील तक