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ग़ज़ल
ऐ 'अना' तुम मत गिराना अपने ही किरदार को
उन को कहने दो कि ख़ुद-दारी कहाँ आ गई
नफ़ीसा सुल्ताना अंना
ग़ज़ल
असीर जबलपुरी
ग़ज़ल
जिस शख़्स ने भी खाए हैं संगीन ज़ख़्म-ए-दिल
देते उसी को हैं यहाँ तस्कीन ज़ख़्म-ए-दिल
मंजु कछावा अना
ग़ज़ल
हम महफ़िल-ए-जानाँ में 'असीर' आप ही चुप हैं
बातें वो बनाएँ कि जो हों बात के क़ाबिल
मुज़फ़्फ़र अली असीर
ग़ज़ल
ख़ाम-ए-तबई' से तुम्हारे है बहुत तंग 'असीर'
कीजिए वस्ल का इक़रार तो पक्का पक्का
मुज़फ़्फ़र अली असीर
ग़ज़ल
उस गुल-बदन के इश्क़ में रोऊँ न क्यों 'असीर'
है मुझ को रश्क-ए-तालेअ'-ए-शबनम तमाम रात