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ग़ज़ल
वाह-रे इंसाफ़ इतना भी न वाँ पूछा गया
ये क़ुसूर-ए-हुस्न है या अस्ल में तासीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
एक ही जल्वा है जब हंगामा-आरा-ए-शुहूद
फिर वही शाहिद वही मशहूद होना चाहिए
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
उन्स है माद्दा-ए-अस्ल-ओ-सरिश्त-ए-इंसाँ
उल्फ़त इंसान से रक्खेगा जो इंसाँ होगा
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
उसे दैर-ओ-हरम में जाज़बिय्यत क्या नज़र आए
जो तेरी दीद को अस्ल-ए-मज़ाक़-ए-बंदगी समझे
नख़्शब जार्चवि
ग़ज़ल
हमीं से अस्ल-ए-बिना-ए-हयात थी अब तक
मगर हैं चश्म-ए-ख़ुदाई में राएगाँ हम लोग