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ग़ज़ल
ये है तुर्फ़ा-तमाशा कर्बला-ए-अस्र-ए-हाज़िर का
घरों में क़ातिलों के अब अज़ा-दारी भी होती है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
साज़-ए-अस्र-ए-हाज़िर पर नग़्मा-ए-कुहन यारो
होश में अब आ जाओ मेरे हम-वतन यारो
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
कुछ अपनों का करम है कुछ निगाह-ए-अस्र-ए-हाज़िर है
हयात इक हसरतों की दास्ताँ मालूम होती है
सआदत आबिदी
ग़ज़ल
इस तिलिस्म-ए-अस्र-ए-हाज़िर से जब आँखें जल उठीं
दूर जलता इक चराग़-ए-इस्म-ए-आज़म देखना