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ग़ज़ल
जो गले तक आ के अटक गया जिसे तल्ख़-काम न पी सके
वो लहू का घूँट उतर गया तो सुना है शीर-ओ-शकर भी है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जगत सबहहा अमत बरहमुख अटक कहसवा ममन करन खा
दिवानी केनी तुमन सुरीजन न सुध की गर पर न बुध की झाला
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मिरे मुक़द्दर में जो लिखा था नसीब से वो पहुँच न पाया
गिरा तो था आसमान से कुछ खजूर में रह गया अटक कर
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
कभी आँखों में रुके कोई गुज़रता हुआ पल
कभी साँसों में अटक जाती है चलती हुई रात
याह्या ख़ान यूसुफ़ ज़ई
ग़ज़ल
ख़ुद भी दुनिया जो अटक पड़ती है दीवानों से
अस्ल में वाक़िफ़-ए-हालात नहीं होती है