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ग़ज़ल
उस की ख़ुश-बू कहीं अतराफ़ में फैली हुई है
सुब्ह से रक़्स-कुनाँ बाद-ए-सबा है मुझ में
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
दिए जलते हैं, बुझते हैं, मिरे अतराफ़ में और मैं
बस इक साए के पीछे भागता रहता हूँ बारिश में
ख़ालिद मोईन
ग़ज़ल
इसी बाइ'स मैं अपना निस्फ़ रखता हूँ अँधेरे में
मिरे अतराफ़ भी सूरज कोई गर्दिश में रहता है